*क्या है इस बार धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त?*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

*क्या है इस बार धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त?*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

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कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाया जाता है । जो इस बार 18 अक्टूबर दोपहर 12:18 मिनट से 19 अक्टूबर दोपहर 1:51 मिनट तक है। ज्योतिषाचार्य सुरेश पांडेय के अनुसार इस बार धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त शनिवार शाम 7:16 से रात 8:20 मिनट रहेगा। इस दिन भगवान धन्वंतरि, मां लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा होती है। भारत में धनतेरस का महत्व और इस दिन सोना-चांदी खरीदने की परंपरा निम्नलिखित कारणों से जुड़ी हुई है। धनतेरस का महत्व देखें तो उसमें सबसे पहले धनतेरस का अर्थ देखें । धनतेरस दिवाली से दो दिन पहले मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इसका नाम "धन" (संपत्ति) और "तेरस" (तेरहवां) से मिलकर बना है, क्योंकि यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की तेरहवीं तिथि को मनाया जाता है। इस दौरान धन्वंतरि जयंती भी है। इस दिन को आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। यह शुभ दिन समृद्धि और स्वास्थ्य का दिन हैं। धनतेरस को धन,समृद्धि और स्वास्थ्य का त्योहार माना जाता है। लोग इस दिन धन्वंतरि से स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना करते हैं। इस दिन पूष्य नक्षत्र होने से सोना-चांदी खरीदने की परंपरा हैं। सोना और चांदी को समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। धनतेरस के दिन इन्हें खरीदना शुभ माना जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे घर में लक्ष्मी का वास होता है। इस दिन संबंधित पौराणिक कथा भी है जैसे एक लोककथा के अनुसार एक बार राजा हिमा के पुत्र की मृत्यु का समय निकट था लेकिन उसकी पत्नी ने रात भर जागकर धन और सोने-चांदी के आभूषणों की रोशनी से यमदूतों को अंधेरा कर दिया। जिससे उसके पति की जान बच गई। इसके बाद से धनतेरस पर सोना-चांदी खरीदने की परंपरा शुरू हुई। इस दिन का आर्थिक महत्व देखें तो इस दिन सोना-चांदी खरीदने को निवेश और आर्थिक सुरक्षा से भी जोड़ा जाता है। लोग इसे भविष्य के लिए एक सुरक्षित निवेश मानते हैं। इसी दिन नए बर्तन खरीदने को शुभ माना जाता हैं। कुछ क्षेत्रों में लोग इस दिन धातु के बर्तन विशेष रूप से चांदी,तांबा या पीतल के खरीदते हैं क्योंकि इसे शुभ माना जाता है। धनतेरस का त्योहार न केवल धन और समृद्धि का प्रतीक है बल्कि यह लोगों में आशा और नए सिरे से शुरुआत की भावना भी जगाता है। घनतेरस जिसे धनतेरस या धनत्रयोदशी भी कहते हैं के दिन मुख्य रूप से दो देवताओं की पूजा की जाती है। जिसमें भगवान धन्वंतरि (Dhanvantari) भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक और देवताओं का वैद्य माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। उनकी पूजा करने का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य, दीर्घायु और कल्याण की कामना करना है। अच्छे स्वास्थ्य के बिना धन का कोई मूल्य नहीं है इसलिए इन्हें सबसे पहले पूजा जाता है। भगवान कुबेर (Kubera) की भी पूजा होती हैं। भगवान कुबेर को धन का स्वामी और खजाने का देवता माना जाता है। इस दिन इनकी पूजा धन-संपदा, वैभव और आर्थिक समृद्धि के लिए की जाती है। मान्यता है कि इस दिन कुबेर की पूजा करने से घर में धन की कमी नहीं रहती और लक्ष्मी का वास होता है। एक तीसरा महत्वपूर्ण पहलू हैं माता लक्ष्मी की पूजा
हालाँकि घनतेरस मुख्य रूप से धन्वंतरि और कुबेर को समर्पित है लेकिन इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा का भी विशेष महत्व है क्योंकि अगले दिन दीपावली पर माँ लक्ष्मी की विशेष पूजा होती हैइसलिए घनतेरस को दिवाली उत्सव की शुरुआत माना जाता है और लक्ष्मी जी के स्वागत की तैयारी के रूप में भी उनकी पूजा की जाती है। संक्षेप में कारण देखें तो धन्वंतरि की पूजा इसलिए की जाती हैं कि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है के सिद्धांत पर, दीर्घायु और निरोगी काया के लिए। जबकि कुबेर की पूजा इसलिएहोती हैं कि धन और भौतिक संपदा की प्राप्ति के लिए,लक्ष्मी की पूजा समृद्धि, सौभाग्य और पूर्ण समृद्धि के लिए। इस प्रकार घनतेरस का पर्व स्वास्थ्य और धन दोनों को समान महत्व देता है और दोनों के देवताओं की एक साथ पूजा की जाती है। इस दिन बर्तन,सोना,चाँदी आदि खरीदने की परंपरा भी इन्हीं देवताओं से जुड़ी मानी जाती है, जो समृद्धि का प्रतीक है।◆ News by√•News Nasha24•

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